Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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अंबाला शहर (पंजाब) में संस्थापित संस्थाएं पत्र मंगवाये गये । स्थानीय म्युनिसिपल कमेटी से १००) की वार्षिक सहायता भी मिलने लगी। इस वाचनालय से अंबाला शहर की जनता की अच्छी सेवा हो रही है।
श्री आत्मानंद जैन लायब्रेरी-सन् १९२२ में अंबाला जैन समाज के अहोभाग्य से श्री मुनि वल्लभविजयजी का चातुर्मास दूसरी बार यहां हुआ। इस चातुर्मास में तीन चार कार्य अच्छे महत्त्व के हुवेः
१--आप ने सद्गत न्यायांभोनिधि श्री विजयानंदसूरि महाराज का तथा अपना सर्व पुस्तक संग्रह अंबाला में रखना निश्चित किया और लायब्रेरी की स्थापना की। श्री मंदिरजीमें जो पुराना भंडार था वह भी मिल गया। श्री मुनि राजविजयजी ने भी अपना कितना ही हस्तलिखित संग्रह यहीं देदिया । ___ इस पुस्तकालय में ७७७ हस्तलिखित शास्त्र, ५४७ मुद्रित शास्त्र तथा भिन्न २ भाषामें और विषयों को सर्वोपयोगी ६०८६ पुस्तकें हैं जिन से जैन अजैन सभी लाभ उठाते हैं।
२-श्री आत्मानंद जैन स्कूल की बिल्डिंग के लिये आप के उपदेश से २२ हजार रुपया जमा हुआ जिस से यह संस्था स्थायी हो गई ।
३-श्री आत्मानंद-शिक्षावली-जैन वालिकाओं और बालकों को समुचित रूप से धार्मिक शिक्षा देने के लिये पुस्तकों का हिन्दी भाषा में अभाव देखकर आप के सदुपदेश और प्रोत्साहन से एक शिक्षावली तैयार की गई जिस के चार भाग प्रकाशित हो चुके हैं और पंजाब, मेवाड़, मारवाड़ादि प्रांतों में पढ़ाये जारहे हैं । इसका श्रेय भी श्री आचार्य महाराज को ही है।
भारत-इतिहास संशोधन-समाजसुधार और शिक्षाप्रचार के आतरिक्त यह एक और बड़े महत्त्व का कार्य है जिस का सब को गर्व होना चाहिये। जैनों का अपना कोई सुंदर सुसंबद्ध और प्रमाणिक इतिहास नहीं जिस का हमें खेद है। स्वयं जैनों में अपने इतिहास के विषय में बहुत कुछ मतभेद है। इसी कारण से पाश्चात्य विद्वानों ने भारतवर्ष के इतिहास में जैनों के विषय में बहुत कुछ अंडवंड लिखा है। हमारे भारतीय विद्वान् भी स्वतंत्र खोज का कष्ट न ऊठाकर उन्हीं पाश्चात्य विद्वानों की पुस्तकों के उद्धरण तथा अनुवाद प्रकाशित करदेते हैं। इनमें से अधिकांश पुस्तकें स्कूलों में हमारे बालकबालिकाओं को पढ़ाई जाती है जिस का परिणाम यह होता है कि जैन धर्म के विषय में उनके विचार भ्रांत एवं कुत्सित होजाते हैं जिनका कुप्रभाव आयुभर रहता है; क्यों कि- यन्नवे भाजने लग्नः संस्कारो नान्यथा भवेत ।"
सभा की दृष्टि इस ओर गई । लेखकों तथा प्रकाशकों को युक्तियों और प्रमाणों से वास्तविकता का परिचय दिया और उन्हें अपनी भूल सुधार के लिये बाधित किया। इन पुस्तकों के दूसरे संस्करणों में संशोधित विवरण ही छपे हैं। ऐसी एक दर्जन से
[श्री आत्मारामनी
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