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श्री. जसवंतराय जैनी
ऐसे शब्दों की भाषा में व्याख्या करने का क्रम ग्रहण किया । इस से संस्कृत परिपाटी को सम्मान मिला, मूल संस्कृत शब्द जो तत्त्वचर्चा में दैनिक प्रयोग में आते थे विदित रहे, और संस्कृत न जाननेवाले पाठकों को उनकी भाषा में ज्ञान-दान मिला। यह सब होते हूए भी पूज्यपाद महाराजजी की भाषा-शैली क्रम-बद्ध, साहित्यिक और प्रभावशाली है, विषय के अनुसार उनकी भाषा उचित रूप धारण किए हुए है; वह गद्य होते हुए भी पद्य के समान मनोहर और स्वाभाविक प्रवाह लिये हुए है । उदाहरण के लिये निम्न लिखित उद्धरण लीजिये ।
66 वाह नास्तिकशिरोमणि ! तुम अपने कहने कुं कभी विचार शोचकर कहते हो वा नहीं ? इस तुमारे कहने से तो पूर्ण नास्तिकपणा तुमारे मत में सिद्ध होता है, यथा जब सर्व कुछ जगतस्वरूप परमात्मारूप वही है, तब तो न कोई पापी है, न कोई धर्मी है, न कोई ज्ञानी है, न कोई अज्ञानी है, न तो नरक है, न तो स्वर्ग है, साधु भी नहीं, चोर भी नहीं, सत्शास्त्र भी नहीं, मिध्याशास्त्र भी नहीं, तथा जैसा गोमांसभक्षी, तैसा ही अन्नभक्षी है, जैसा स्वभार्या से कामभोग सेवन किया, तैसा ही माता, बहिन, बेटी से किया, जैसा चंडाल, तैसा ब्राह्मण, जैसा गधा, तैसा संन्यासी करके जब सर्व वस्तु का कारण ईश्वर परमात्मा ही ठहरा, तब तो सर्व जगत् एक रस - एक स्वरूप है, दूसरा तो कोई है नहीं ।" भाव देखिये, भाषा देखिये और देखिये शैली की मनोहरता और कोमलता ! इस में बनावट नहीं, विशेष सजावट नहीं, सीधी सादी मधुरता है, विपक्षी भाई को कैसे स्वाभाविक और विचित्र ढंग से उसकी निर्बलता दिखाई है । हां, जहां गहन तत्त्व - चर्चा है, वहां भाषा भी विषय के अनुसार उंची उठी हूई है, जो स्वाभाविक गुण 1
यह श्रद्धास्पद गुरुवर की प्रखर प्रतिभा की उपज है कि उन्हों ने हिंदी गद्य को रूप देकर उस शैली की रचना की, जिसे संस्कृत जाननेवाला उत्साह से पढ़े, उर्दू-हिंदी जाननेवाला थोड़े ही अभ्यास से समझे, गुजराती भाई पढ़े, पंजाबी भाई पढ़े, मारवाडी, दक्षिणी कोई भी हो, पढ़े, समझे, अपनी आत्मा का कल्याण करे और गुरुमहाराज के प्रति श्रद्धा से विनीत होकर भक्ति की पुष्पांजलि अर्पण करे ।
श्री आत्मारामजी महाराज ने कौन कौन से हिंदी ग्रंथ बनाये, उनका दिग्दर्शन कराना भी समयोचित है, इसी प्रसंग में अन्यान्य जैनेतर विद्वानों के अभिप्राय भी दिखाये जायेंगे। जैनतच्चादर्श:: - इस में देव - गुरु-धर्म का स्वरूप, जीवादि नवतत्त्वों के भेद, सम्यग्ज्ञान-दर्शन- चारित्र की व्याख्या, श्रावक के दिन व रात्रि कृत्यों का सविस्तर वर्णन और
शताद्वि ग्रंथ ]
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