Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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श्री. जसवंतराय जैनी
इन महात्मा
पवित्र जीवन में अनेक प्रसंग और घटनायें उपस्थित हुईं, जिनसे उनके विचित्र चारित्र पर प्रकाश डालनेकी सामग्री मिल सकती है, परंतु खेद है, किसी ने भी उस समय की हिलचलशील स्थिति - गति का वर्णन लिखरखने में दूरदर्शिता का उपयोग नहीं किया । हां, इतना हर्ष जरूर है कि साम्प्रतमें उनके समय के कतिपय गृहस्थ और उनके करकमलदीक्षित साधुमहात्मा विद्यमान हैं, उनके स्मरण में जो २ प्रसंग, घटनायें और परिस्थितियें शेष रह गई हैं, उन्हें संग्रह करके इन महात्मा के चारित्र वर्णनकी रूपरेखा घड़ी जाती है, इसलिये श्री आत्मारामजी महाराजके जीवन का संपूर्ण वृत्तान्त करना अशक्य है । तो भी महात्माओं का जितना भी गुणानुवाद किया जाये, श्रेयो निःश्रेयसास्पदम् है इसी भावना से शक्ति नहीं परं भक्तिवश किञ्चिद् लिखने के लिये प्रयत्नशील हो रहा हूं, वह भी केवल हिंदी भाषा में ग्रंथ रचने की उनकी बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता के संबंध में संक्षेप से ।
श्री आत्मारामजी और हिंदीभाषा
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वह कौन था ? क्या था दिवाकर ? या सुधा का धाम था । सुनिए, विनय विद्या दया का धाम आत्माराम था ॥ श्रीमद्विजयानंदसूरिवर प्रसिद्धनाम श्री आत्मारामजी महाराज संसार के प्रधान विद्वानों में एक समर्थ लेखक थे, वह समयज्ञ और विचारशील लेखक थे, उनके धार्मिक तथा सामाजिक सुधारे के विचार भी उच्च कोटी के होते थे । उनकी गणना उन लेखकों में है, जो संसार के हिंदीसाहित्य क्षेत्र में अपना प्रभाव स्थायी रूपसे छोड़ गये हैं । उनका अवतारी जीवन ऐसे समयका है, जबकि धार्मिक तत्त्वों का संहार हो रहा था, लोग धर्मसे विमुख होते जाते थे, पाश्चात्य उपदेशकों की मधुर वाणीका प्रभाव युवकमंडल पर धीरे २ 'विषकुंभ: पयोमुखं' के समान धर्म का विनाश कर रहा था, सद्धर्मके प्रकाशक और प्रचारक विरले थे, पाखंड, शिथिलता और अविद्या का अंधकार विस्तृत हो रहा था। एक कविने उस समय का थोड़ा-सा चित्र खींचकर यूं दिखाया है:
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गफलत की नींद में थे, सोए पड़े सभी हम, लुटता चला था जाता, चोरों से धन हमारा । मिथ्यात्व में पड़े हम, जाते थे उलटे पथ पर, भूले हुए थे सब कुछ, कर्त्तव्य जो हमारा ॥ छूटा था देवपूजन, और भक्तिभावना भी, यह भी खबर नहीं थी, क्या धर्म है बिचारा ?
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