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श्रीआदिनाथ-चरित
समयसे प्रारंभ हुई । प्रभुको वस्त्राभूषणोंसे आच्छादित देख कर लोग भी अपनेको वस्त्रालंकारसे सजाने लगे । प्रभुने जिस तरहसे पाणिग्रहण किया था उसी तरह, उसके बाद और लोग भी पाणिग्रहण करने लगे । वह प्रवृत्ति आज भी चल रही है । प्रभुके विवाह के बाद दूसरेकी कन्याके साथ ब्याह करनेका रिवाज हुआ । चूड़ा, उपनयन आदि व्यवहार भी उसी समयसे चले । यद्यपि ये सारी क्रियाएँ सावध हैं तथापि समयको देखकर, लोगोंके कल्याणार्थ प्रभुने इनका व्यवहार चलाया । प्रभुने जो कलाएँ चलाई, उनका शनैः शनैः विकास हुआ । अर्वाचीन कालके बुद्धि-कुशल लोगोंने उनके शास्त्र बनाये । उनसे लोग आजतक लाभ उठा रहे हैं।
प्रभुने चार प्रकारके कुल बनाये । उनके नाम ये थे; १उग्रः २-भोग; ३-राजन्य, ४-क्षत्री।
(१) नगरकी रक्षाका काम यानी सिपाहीगिरी करनेवालोंको एवं चोर लुटेरे आदि प्रजापीडक लोगोंको दंड देनेवालोंका जो समूह था उस समूहके लोग उग्रकुलवाले कहलाते थे ।
(२) जो लोग मंत्रीका कार्य करते थे वे भोगकुलवाले कहलाते थे। ___(३) जोलोग प्रभुके समवयस्क थे और प्रभुकी सेवामें हर समय रहते थे वे राजन्यकुलवाले कहलाते थे।
(४) बाकीके जो लोग थे वे सभी क्षत्री कहलाते थे । चार प्रकारकी नीतियाँ भी प्रभुने नियत की थीं । वे थीं शाम, दाम, दंड, और भेद । जिस समय जिसकी आवश्यकता
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