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जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध)
बात उठा नहीं रखी थी। सन् १९१६ का शान्दार अधिवेशन इन्हींकी महनतका फल था । और समाज व धर्मकी उन्नतिके मिमित्त जो अनेक प्रस्ताव उस समय हुए थे, उनमें अका मुख्य हाथ था। ___जैन एज्युकेशन बोर्डके ये सन् १९१६ में प्रेसीडेन्ट (प्रमुख) चुने गए। जैनोंके लिए शिक्षण-विषयक अलग Column रखानेके वास्त आपने गवर्मेन्टसे और म्युनिसिपालेटीसे निश्चित कराया । इस मम्थाके आप आजीवन सभ्य हैं.
जैन कॉन्फरसके आप प्राणसम हैं । सादडी अधिवेशनके बाद कॉन्फरंस जरा सुषुप्ति दशामें आ गई थी। आपने सन् १९२५ में कन्वेन्शन बुला उसे जागृत की। आप “ रेसीडेन्ट जनरल सेक्रेटरी" चुने गए। सन् १९२६ में जैन समाजक समक्ष एक अत्यत महत्त्वपूर्ण प्रश्न उपस्थित हुआ । परमपवित्र श्री श–जयतीर्थक मवन्धमें पालीताणा ठाकुरके साथ विकट परिस्थिति उत्पन्न हुई। आपने इस समय अडग रह कर जैनकान्फरंसका स्पेशल अधिवेशन बंबई में बुलाया। जनसमाजको जागृत करनेके लिए — बॉम्बे क्रॉनिकल । ( अंग्रेजी दैनिक ) में
शत्रुजय संबन्धो विद्वत्तापूर्ण लेख दिये, जिनका संग्रह कॉन्फरंसने * Shatrunjaya Dispute ' नामक पुस्तकमें किया । इन लेखोंने जनसमाजके चक्षुपट खोल डाले थे । जैनेतरोंने इस प्रश्नके लिए सहानुभूति प्रकट की थी । सांगलीमें दक्षिण महाराष्ट्र जैन
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