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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन १३१ आप विद्याके बड़े प्रेमी थे। अपने शिष्यको आपने सरकारी उच्च परीक्षाएँ दिलाई थीं और जैनसमाजके अनेक काम आपन कराये थे । अनेक स्थानोंमें चौमासे करके अठाई महोत्सव, स्वामीवत्सल अदि कराये थे।
धरणेन्द्र ‘गणि'
इनका गृहस्थ नाम गणेशचंद्र और पिताका नाम हमीरमलजी जातिके ओसवाल और संठिया गोत्रके ये । इनका जन्म चौहठण ( बाडमेर) में सं० १९६४ के फाल्गुन कृष्णा २ को हुआ था । दीक्षा इन्होंने सं० १९८२ के वैशाख सुदि ३ को ली थी। ये जिनचंद्रसरिजीके पट्ट शिष्य हैं । दीक्षा नाम धरणेन्द्र है। ये संस्कृतके शास्त्री हैं। ये बड़े प्रतिभाशाली और अच्छे लेखक हैं । 'जैनसमाजके अनेक पत्रोंमें ' प्रायःलेख लिखा करते हैं । इन्होंने एक सस्कृतके सुभाषितोंका संग्रह किया है और उसका हिन्दी भाषान्तर करके शीघ्र ही प्रकाशित करानेकी उम्मैद रखते हैं । जैनसमाजका कार्य बड़े उत्साहके साथ करते हैं । जयपुरमें गुरणीजी श्रीसोहनश्रीजी महारानके उपदेशसे एक श्राविकाश्रम स्थापित हुआ है। उसके मंत्रीका काम ये बड़े उत्साहके साथ कर रहे हैं । जयपुरके 'श्वेतांबर नवयुवक मंडल'
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