Book Title: Jain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granth Bhandar

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Page 823
________________ १५० जैनरत्न (उत्तरार्द्ध) देवीको घरपर ही पढ़ाना प्रारंभ किया। दिनभर रोजगारका काम करते और रातको घंटे डेढ़ घंटे अपनी पत्नीको पढ़ाते । लक्ष्मीदेवी अपने पतिकी इच्छानुसार मन लगाकर पढ़तीं और रातका सीखा हुआ दिनमें तैयार कर लेती। धीरे धीरे लक्ष्मीदेवीने अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया । ___ भारतमें पर्देकी फिजूल प्रथा और राजपूतानेके वस्त्राभूषणोंके भद्देपनकी और फिजूलखर्चीकी चर्चा बड़े जोरोंपर थी । ईश्वरलालजीने स्थिर किया कि, मैं इस फिजूल और हानिकारक बातको अपने घरसे हटाकर रहूँगा। इन्होंने धीरेधारे अपनी पत्नीको उपदेश देना प्रारंभ किया। एक समय लक्ष्मी देवीने पूछा:-" आपके कहनेके अनुसार अगर मैं चलँगी तो लोग क्या कहेंगे?" इन्होंने प्रश्न किया;-"तुम वस्त्राभूषण पहनती हो, किसके लिए ? " लक्ष्मीदेवीने जबाब दिया:-" आपके लिए !" तब मेरा मन जिससे प्रसन्न होता है वही करो । मुझे तुम्हारा यह बड़ा लहँगा, ये गोटे किनारीकी साड़ियाँ, ये बड़ेबड़े जेवर बिलकुल पसंद नहीं हैं। इन्हें उतार डालो । लंबा घूघट निकालना छोड़ दो।" “ अच्छा" कहकर लक्ष्मीदेवी अपने काममें लगीं। ___ सन १९२० की रक्षाबंधनवाले दिनकी बात है । एक दिन ईश्वरलालजी शहरके बाहरवाले अपने मकानमे भोजन करके बैठे थे । उस समय उनके दिलमें यह खयाल आया कि, मैं आज लक्ष्मीकी यह बीमारी-पर्दे और जेवरकी बीमारी-हटाकर ही रहूँगा । उन्होंने पत्नीको बुलाया । कहाः-" आज तुम ये जेवर उतार दो और रंग बिरंगे कपड़े निकालकर सफेद खद्दरके कपडे पहन लो।" लक्ष्मीदेवीका मन दहला। यह नई बात कैसे होगी । उनकी आँखोंसे पानी गिरने लगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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