Book Title: Jain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granth Bhandar

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Page 884
________________ स्थानकवासी जैन सद्गृहस्थ ३७ कन्यापाठशाला चल रहे हैं । संस्थाओंसे करीब दो सौ विद्यार्थी लाभ उठा रहे ह। इन्होंने अपने खर्चेसे नीचे लिखे काम किये हैं। १. उदयपुरमें एक जैन हुनरशाला कायम की । २. उदयपुरमें प्रदर्शनियाँ भरीं । जिनमें जैन हुनरशालामें बने हुए मालके लिए इनका अच्छा सन्मान हुआ। उदयपुरके महाराणा साहब भूपालसिंहनी भी एक प्रदर्शनीमें पधारे थे और हुनरशालाके कार्यको देखकर खुश हुए थे। ३.सं.१९८८ में इन्होंने बीकानेर जिलेके चूरू गाँवमे ६०० गायें नीलाममें, इसलिए खरीदी कि घासके आभावसे वे वहाँ मरती थीं। बीकानेर राज्यने गायोंका निर्यातकर, ३ हजार रुपये, माफ कर दिया । उदयपुरके स्वर्गीय महाराणाजी श्रीफतेहसिंहनीने ४ हजार रुपये गायोंकी रक्षाके लिए दिये । ४. जैनरत्न धर्मपुस्तकालय स्थापन किया । उसमें करीब ३ हजार रुपयोंकी पुस्तकें हैं। ५. जैनरत्न उत्तम प्रकाशकमंडल स्थापित कर उसके द्वारा छोटी छोटी करीब २५ पुस्तकें प्रकाशित कराई। ६. घाटकूपर (वंबई ) के जीवरक्षा फंडमें २५०) रु. हुक्मीचंद मंडल रतलामको १५१) और (३) जैनशिक्षणसंस्थामें धर्मरत्न पुस्तकालय भवन बनानेमें ५००) रु. दिये। ये उद्योगी और मिलनसार आदमी हैं । अपनी मति-शक्तिके अनुसार महायता करनेमें संकोच नहीं करते । इनके विचार उदार हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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