Book Title: Jain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granth Bhandar

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Page 891
________________ सूचीपत्र wwwwwmummmmmmmmmmmmmmm (२) प्राणविनिमय-इसमें बताया गया है कि, गरीबीमें भी पतिपत्नी कैसे सुखसे रह सकते हैं । गरीब स्त्री अपने पतिप्रेमके प्रभावसे राजपुत्र तकको सजा दिला सकती है और एक नारीको विधवा होनेसे बचानेमें अपने प्राण दे सकती है । इतनी करुण कथा है कि, पढ़ते पढ़ते आँसू रोके नहीं रुकते। (३) सेवाका अधिकार-इसमें बताया गया है कि, पुरुष किस तरह एक नारीव्रत पालन कर सकता है । स्त्री किस तरह विमुख स्वामीको भी सेवा करके अपनी ओर आकर्षित कर सकती है । पतिकी अमानीती होनेपर भी किस तरह पतिकी निंदा करनेवालोंका मीठा तिरस्कार करती है और अपने आचरण द्वारा यह बताती है कि, एको धर्म एक व्रत नेमा, मन वचकाय पतिपद प्रेमा। (४) वीणा-इसमें बताया गया है कि आज कलके पढ़े लिखे पुरुष भी कैसे धनलोलुप होते हैं । एक सुशिक्षिता कन्या किस भाँति अपने पिताको कर्जकी बदनामीसे बचानेके लिए अपना सब कुछ देकर आप दाने दानेकी मोहताज हो जाती है । किस तरह अपने गुणोंसे फिरसे घरको सुव्यवस्थित करके सुखी होती है । (५) सतीतीर्थ-इसमें बताया गया है कि एक सरल कृषक बालिका किस भाँति एक डाकूको भी सन्मार्ग पर ला सकती है। (६) अरुणा-इसमें बताया गया है कि एक स्त्री अपने कर्तव्यके लिए अपने पिताकी मान मर्यादाको बचानेके लिए, एक पुरुषसे प्रेम करती हुई भी और उसके हाथों कैद हो जाने पर भी उससे लग्न नहीं करती है और उसको अपने पिताके साथ सुलह करनेके लिए अपनी मौन भाषाद्वारा, अपनी उदासीनता द्वारा विवश करती है । बड़ी ही अद्भुत कथा है। (७) त्याग-इसमें बताया गया है कि, स्त्री अपने पतिको प्रसन्न करनेके लिए कर्त्तव्य समझकर अपने प्राण तक दे सकती है । अनेक बहुरंगी और एक रंगी चित्रोंसे सुशोभित पुस्तकका मूल्य सादीका ॥) सुनहरी अक्षरोंवाली बाइंडिंगके २) रु. : · सुप्रसिद्ध विद्वान हिन्दी ग्रंथरत्नाकर कार्यालयके मालिक श्रीयुत नाथूरामजी प्रेमी लिखते हैंShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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