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जैनरस्न ( उत्तरार्द्ध) -
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प्रेमजीसेठकी प्रथम पत्नी श्रीमती देवकाबाईने ब्याहके छ: बरसके बाद दुनियासे उदास होकर अपने पुत्र नानजीको छः चरसका छोड़कर दीक्षा लेली । इन्होंने आठ कोटि नानी पक्षकी महासतीजी केसरबाईनीसे दीक्षा ली थी। इनका दीक्षा-नाम देवकुरबाई स्वामी हुआ। ये तीन वरस अच्छी तरहसे चारित्र पालकर कालधर्मको प्राप्त हुई ( इनका देहान्त हुआ)
जायदाद-इन्होंने सीवरी ( बंबई ) में दस हजार वार जमीन खरीदी और बंबई में, रंगुनमें और बेंगलोरमें बंगले बनवाये । ___ लग्न और मृत्यु-इन्होंने पाँच लग्न अपने भाइयोंके और 'पुत्रके किये । उनमें पचास हजार रुपये खर्चे । इनके पिताकी मृत्यु हुई तब उनके पीछे जमणवार ( जीमन या नुकता ) कर. नेमें और दान देने में ग्यारह हजार रुपये खर्चे ।
दान-इन्होंने जुदा जुदा नीचे लिखे स्थानों में दान दिया है। १८०००) अपने गाँव बाराईमें सेठ देवनी खेतसीके स्मरणार्थ
एक स्थानक बंधवाया और उसे संघके अर्पण
कर दिया। ३००००) बंबईमें स्थानकके चंदेमें और पांजरापोलके चंदेमें
दिये। इनके अलावा करीब डेढ दो हजारका दान जुदा जुदा स्थानों में हर साल किया करते हैं।
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