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जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध)
उदयपुरमें नवीन जीवन डालनेवाले सज्जनोंमें कहा जाता है कि ये भी एक हैं । आजतक उदयपुर शहरमें कोई भी सार्वजनिक कार्य ऐसा नहीं हुआ जिसमें इन्होंने सेवा न की हो।
इनका स्वभाव, बड़ा ही मिलनसार और उदार है। बाहरसे कोई सार्वजनिक कार्यकर्ता शहरमें आता है तो ये हर तरहसे उसकी. सहायता करते हैं।
श्रीयुत रतनलालजी महता इनका जन्म स.१९३३के महा वदि ७ को हुआ था। इनके पिताका नाम एकलिंगदासजी था । ये जातिके ओसवाल, स्थानकवासी जैन हैं। ___ इनके दो भाई गेरीलालजी और बख्तावरमलनी हैं । गेरीलालांका देहांत हो गया है। इनके दौलतसिंहजी और करणसिंहनी दो पुत्र हैं।
इनके मातापिताका देहांत बचपनहीमें हो गया था । इसलिए इनकी पढ़ाईकी कोई व्यवस्था न हुई । सिर्फ हिन्दीकी दो पुस्तकें पढ़े थे। कुछ लिखनेका अभ्यास करके ये मगरेमें थोड़ी तनखापर नौकर हुए। ___सं० १९७६ से इनको सेवाका शौक पैदा हुआ। और ये जैनशिक्षणसंस्था उदयपुरमें संचालकका काम करने लगे। सं. १९८४ में तो इन्होंने नौकरी भी छोड़ दी और ये अपना सारा समय संस्थाका काम करनेमें बिताने लगे।
इन्होंने विद्यार्थियोंके साथ भ्रमण कर संस्थाके लिए स्थायी फंड जमा किया। जिसका सूद २०० रु. मासिक आता है। इस संस्थाकी देखरेखमें (१) जैन ज्ञानपाठशाला (२) जैन ब्रह्मचर्याश्रम (३) जैन
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