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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन
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लड़की हुई । उसको नलिया कच्छवाले सा. गेलाभाई लीलाधरके साथ सं. १९४५ में व्याही । सं.१९५७ में उसका देहांत हो गया। ___सं. १९३५ में मूरबाईके पतिका देहांत हो गया । सं. १९५६ में हालार प्रांतके गांव असडियाके रहनेवाले रतनसी कूरसीके लड़के खीमजीको मूरबाईने गोद लिया। खीमजी उस समय आठ बरसके थे । सं. १९६० में खोमजीके लग्न किये। उनके चार लड़के और तीन लड़कियाँ हुए । एक लड़का मर गया । लड़के मणिलाल, केसरसिंह,
और डूंगरसिंह व लड़कियाँ वेजबाई, कस्तूरीबाई, हीरवाई मौजूद हैं। ___ मूरबाईके सुसरे मांडण तेजसिंहने कच्छ सांधाणमें जिनमंदिर, पांजरापोल बनवाये और सदाव्रत, कुत्तोंको रोटियाँ और कबूतरोंके लिए दानेकी खास व्यवस्था की । इस व्यवस्थाको ससुर और पतिके गुजरजानेके बाद भी, मूरबाईने-अपनी तकलीफके समयमें भी चालू रक्खी। ___ मूरबाईमें बुद्धि, शक्ति और व्यवहार कुशलता थे। सारी पंचायतपर उनका काबू था । गाँवके ठाकुर उनकी सलाह लेते, जातिमें, या गाँवके अन्य लोगोंमें कोई झगड़ा होता तो मूरबाई उसका फैसला करतीं । वे प्रभावशालिनी थीं। उनके सामने बोलनेका किसको साहस न होता था। वे अपना विचारा करतीं। अपनी बातपर कायम रहतीं। उन्हें अनेक बार कचहरियोंमें जाना पड़ा था। वकील लोग उनकी बुद्धिमत्ताके कायल थे। कठिन मामलोंमें उनकी सलाह लेते थे । उन्हें वृद्धावस्था में सभी मूरबाई माँ कहते थे। उनके गाँव साँधाणमें आया हुआ कोई भी जैन उनके घर जीमे बिना जा नहीं सकता था। वे देव गुरु और साधर्माकी बड़ी सेवा करती थीं। उनका शरीर कद्दावर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com