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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन १३३ उनको किसीने जाकर कहा कि, भीलवाड़ेसे यतिजी महा. राज उदयचंद्रजी आये हैं और वे सिद्ध महात्मा हैं । अगर वे चाहें तो इसका पता लगा सकते हैं ।
शेरसिंहजीने तुरत अपने आदमी दौड़ाये और उदयचंद्रजीको चोरीका पता लगानेके लिए कहा । उन्होंने जवाब दियाः-" मैं साधु आदमी हूँ । चोरियोंका पता लगाना मैं नहीं जानता । नमोकार मंत्र चाहो तो मैं सुना सकता हूँ।"
जब उन आदमियोंने उनको भेट पूजाका दो सौ चार सौ रुपयोंका लालच दिलाया तब तो वे एकदम मौन हो गये और नवकार मंत्रका जाप करने लगे।
आदमी निराश होकर गये । तब शेरसिंहजीको वृद्ध आदमियोंने सलाह दी कि, आप खुद जाइए और नम्रतापूर्वक उनसे प्रार्थना कीजिए।
शेरसिंहजी मुसद्दी आदमी थे। महाराजके पास गये और वंदना करके चुपचाप बैठ गये। पहले जो आदमी आये थे उनको -साथ न लाये।
उदयचंद्रजीने पूछाः—" आप कैसे आये हैं ? "
उन्होंने नम्रतासे जवाब दियाः--" किसी कामके लिए हाजिर हुआ हूँ; परन्तु कहते संकोच होता है।"
उदय-संकोचकी कोई बात नहीं है । काहए । शेर०-आप मुझे निराश तो न करेंगे ?
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