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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन १४१. इसका परवाना उन्होंने सं० १८८१ का महा सुदि १ को कर दिया ।
नगराननी महारान बड़े ही गंभीर और सरल स्वभावके थे और लोगोंका इलाज किया करते थे । उनके हाथमें यश था । उनका निसने इलाज कराया वह रोगमुक्त हो गया।
उनके दो शिष्य थे । एक चत्रभुजनी जिनका जिक्र ऊपर आया है और दूसरे रुगनाथजी । ____ रुगनाथजी बनेड़ेसे भीलवाड़े गये । वे बड़े अच्छे ज्योतिषी थे। उनके शिष्य रामचंद्रजी हुए। वे बहुत बडे विद्वान थे । वे काशी चले गये। उन्होंने मकसदाबादके सेठ लक्ष्मीपतजी
और धनपतसिंहजी को उपदेश देकर काशीजोके मत टोलामें एक जिनमंदिर और उपाश्रय बनवाये और एक जैनप्रभाकर प्रेसकी स्थापना की । उस प्रेससे उन्होंने ४५ आगमोंकी, हिन्दी टीका लिखकर, प्रकाशित कराई । उनको पीछेसे उनके श्रीपूज्यनीन, उपाध्याय और गणिकी पदवी दी थी। ___उनके शिष्य नानकचंद्रजी हुए। वे भी बहुत बड़े विद्वान थे। उन्होंने, सुना जाता है कई पुस्तकें लिखीं व संपादन की थीं। उनमेंसे दो हमने देखी हैं । एक है 'कर्मग्रंथ ' प्रथम भागकी हिन्दी टीका और दूसरी है 'जिनपजासंग्रह' ।
२. चतुरभुजजी महाराज ये महाराज बड़े अच्छे वैद्य, और मंत्रविद्याके जानकर थे।
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