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११८ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) उनसे ४ संतान हुई,-'माणिकलाल और जयसुखलाल नामके दो पुत्र और ताराबहन व रमाबहन नामकी दो पुत्रियाँ ।
ये उद्योगी और उदार मनुष्य हैं। सामाजिक और धार्मिक उन्नतिके कामोंमें बहुत महनत करते हैं।
साहित्य और खास कर जनसाहित्यके बडे शोकीन है। इनकी जैनसाहित्यकी सेवा अमर रहेगी। आजतक इन्होंने निम्न लिखित पुस्तकें लिखीं हैं। १ जैनसाहित्य अने श्रीमंतोनुं कर्तव्य (गुजराती) २ जिनदेवदर्शन
( , ) ३ सामायिक सूत्र ( म्हस्य ) ४ जैनकाव्यप्रवेश
( , ) ५ समकितना ६७ बोलनी सन्झाय अर्थ सहित ( ,, ' ६ जैन ऐतिहासिक गसमाला भाग १ ला ( , ) ७ श्रीमद यशोविजयी
( इंग्लिश ) ८ नयकर्णिका
( , )
(गुजराती) १० उपदेशरत्नकोश ११ स्वामी विवेकानंदना पत्रो १२ श्रीसुजशवली १३ गुर्जर जैनकवियो भाग १ ला ( , ) १४ , , भाग २ रा ( ,, )
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