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जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध)
और जैनसाहित्य संशोधकको १००) रु. दिये थे।
इनका स्वभाव मिलनसार होते हुए भी स्पष्ट और निर्भय है । दूसरेको अपनी परिस्थिति और शक्तिके अनुसार सहायता देने में कभी आगापीछा नहीं करते ।
श्रीयुत बी. एन. महेशरी
इनके पिताका नाम नथूभाई गंगाजर और माताका नाम मीठांबाई था। ये जातिके कच्छो दसा ओसवाल हैं और श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनधर्नका पालन करते हैं । ये कच्छके रहनेवाले हैं और अभी माटुंगा ( बंबई ) में रहते हैं ।
इनका ब्याह जब ये २१ बरसके थे तब श्रीमती रतनबाईके साथ हुआ था । इनके दो पुत्र शरत्चंद्र और कृष्णचंद्र एवं तीन पुत्रियाँ-धनलक्ष्मी, प्रमिला और अनसूया हैं।
इनके पिता बचपनहीमें स्वर्गवासी हो गये थे इसलिए इनको अध्ययन करनेका विशेष मौका न मिला । इनको अपनी छोटी उम्रमें ही रोजगारमें लगना पड़ा। ये वीमाकी दलाली
और सट्टा करने लगे। सन १९१२ से इन्होंने सार्वजनिक कामोंमें भाग लेना आरंभ किया ।
सन १९२३ में इन्होंने एक पत्र निकालना भी आरभ
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