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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन इन्होंने दर्शनशास्त्र, साहित्य और व्याकरणमें पूर्णता प्राप्त की; परंतु परीक्षा किसी परीक्षालय या युनिव्हरसिटीकी न दी । कारण, परीक्षा और उपाधी य दोनों चीज इनको आदरणीय वस्तु मालूम न हई । ये ज्ञानका आदर करते हैं, उपाधिका नहीं। ज्ञान बगैर उपाधिके भी प्रकट हुए बिना नहीं रहता । ___बनारसमें अध्ययन समाप्त करनेके बाद इन्होंने दरभंगा आदि स्थानोंमें रहकर दर्शनशास्त्रका अध्ययन किया । फिर ये आगरेमें आकर आत्मानंद जैन पुस्तक प्रचारक मंडलका काम करने लगे। कई बरसों तक इस कामको बड़ी योग्यताके साथ किया और अनेक ग्रंथोंका संपादन और हिन्दीमें अनुवाद किया।
वहाँसे महात्मा गांधी द्वाग संस्थापित गुजरात पुरातत्त्व मंदिर अहमदाबादमें आये और यहीं सन् १९३२ के सत्याग्रह तक काम करते रहे और गुजरात विद्यापीठमें दर्शनशास्त्र और साहित्य शास्त्र भी पढ़ाते रहे ।
अब ये हिन्दू युनिवरसिटि बनारसमें जैनदर्शनके अध्यापक ( Professor ) हैं।
इनकी अबतक नीचे लिखी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । १ कर्मग्रंथ ४ भाग ( हिन्दी अनुवाद सहित ) २ पंचप्रतिक्रमण (, , , ) ३ योगदर्शन ( , , , ) ४ तत्त्वार्थसूत्र गुजराती अनुवाद सहित )
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