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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन
साथ अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये । बनारस हिन्दु-युनिवर्सिटीकी परीक्षाओंके अभ्यासक्रम ( कोर्स ) में जैनग्रंथ दाखिल कराये । बम्बई युनिवर्सीटीमें भी बि. ए, एम. ए. के कोर्समें आपने कोशिश करके जैन साहित्य दाखिल कराया। उसी समय गुजराती वांचनमालाकी नई पद्धतिसे रचना हुई थी जिसमें जैनोंके संबंधमें अनेक भ्रमोत्पादक बातें थीं। एज्युकेशनल डिपाटमेन्टके साथ पत्रव्यवहार करके आपने ऐसी बातें पुस्तकोंमेंसे निकालवा दी।
राजकीय क्षेत्रमें जैनसमाजको आगे बढ़ानेका भी आपने यत्न किया । जैन त्योहारोंक दिन भो सरकार छुट्टी रखे, इसके लिए जो प्रयत्न हुए उसमें भी आपन अच्छा योग दिया था । इस प्रयत्नका फल यह है कि, कुछ त्योहारोंके दिन सार्वजनिक छुट्टियाँ होती हैं और कुछके दिन साम्प्रदायिक होती हैं।
शिक्षा-प्रचार तो आपका जीवनमंत्र है । 'जैन ग्रेजुएटस एसोशिएशन' के आप उत्पादक हैं।
इस प्रकारकं अनेक जनसमाजोपयोगी कार्योंसे श्री मकनजीभाईने जैन समाजमें ही नहीं परंतु जैनेतर समाजोंमे भो ख्याति प्राप्त की है।
बम्बई में सन् १९१६ में जैनश्वेताम्बर मूर्तिपूजक कान्फरंस का दसवाँ अधिवेशन हुआ था उस समय ये स्वागत-समितिके प्रधानमंत्री थे । उस अधिवेशनको सफल बनानेमें इन्होंने कोई
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