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जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) इनके दादा जब दिगरसमें आये थे तब उनकी दशा बहुत अच्छो न थी; परंतु उन्होंने प्रामाणिक परिश्रम करके अच्छा व्यापार जमा लिया । उनके पुत्र जीवराजजीने उस व्यापारको बढ़ाया और सेठ शिवचंद्रजीने उसको और भी तरक्की दी । आज इनकी पेढी लखपति समझी जाती है।
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श्रीयुत फतेहचंद कपूरचंद लालन
श्री फतेहचंद्रजीका जन्म सं० १९१४ के फालान वदि १० को हुआ था । ये जातिके बीसा ओसवाल और लालन गोत्रके हैं । श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनधर्मका पालन करते हैं । ये खास जामनगर ( काठियावाड़ ) के रहनेवाले हैं और अभी बंबई में रहते हैं। ___इनका ब्याह जब ये चौदह बरसके थे तब श्रीमती मोंधीबाईके साथ हुआ।
ये बड़े ही विद्या-व्यसनी हैं । इनको पढ़नेकी बहुत इच्छा थी; परंतु इनके पिता साधारण गुजराती पढ़ानेके बाद आगे पढ़ने देना नहीं चाहते थे । इसलिए वे न पुस्तकोंके लिए पैसे देते थे और न फी ही देते थे। इन्होंने प्रयत्न करके स्कॉलर
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