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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन
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इनका व्याह जब ये बारह बरसके थे तब श्रीमती सुलक्षणाबाईके साथ हुआ था। इनके दो पुत्र हैं। एकका नाम सुधाकर और दूसरेका सुमतिचंद्र । श्री सुमतिचंद्रकी पत्नीका नाम सरलाबाई है।
शिवजीभाई बचपनहीसे विद्याव्यसनी थे; परंतु इनकी इच्छाके अनुसार इनको अध्ययनकी सुविधा न मिली । तो भी ये यथासाध्य प्रयत्न करते रहे। ____ सं० १९५४ में उमरसीभाईसे इनका स्नेह हुआ । दोनों प्रायः साथ साथ रहते, अध्ययन करते और धर्मक्रियाएँ करते । दोनोंकी स्मरण शक्ति अच्छी थी । इसलिए दोनोंने एक बार 'वीर कहे गौतम सुणो पाँचमा आराना भावरे ' इस २१ गाथाकी सन्झायको एक घंटेमें पाठ करके एक दूसरेको सुना दिया। ___पिताके आग्रहसे ये बंबई आये और कानजी मणसीकी दुकानपर १००) रु. मासिकके वेतनपर नौकर रहे । मगर नौनरीमें इनका मन नहीं लगता था । ये तो संस्कृत पढ़ना चाहते थे इसलिए ऐसी नौकरी करनेकी इच्छा रखते थे जिसको करते हुए ये संस्कृत पढ़ सकें । पालीताना वीरबाई जैनपाठशालाके मॅनेजरकी जगह पर काम करनेके लिए इन्होंने पाठशालाके ट्रस्टी सर वसनजी त्रिकमजी जे. पी. और सेठ हीरजी घेलाभाई जे. पी. से निवेदन किया । उन्होंने इन्हें २३) रु. मासिकपर
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