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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन
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मूर्ति लाई थीं । सेठानी मीबाईर्जाने गोलेछा-देवभवनमें एक देरासर बनवाया और उसमें उस मूर्तिकी सं० १९७२ के. आषाढ़ सुदि २ को प्रतिष्ठा कराई और स्वामि-वत्सलकर अच्छा दान-पुण्य किया।
सेठानी मघीबाई नियमित सामायिक, प्रतिक्रमण देवपूजा आदि धर्मकार्य किया करती थीं। सं० १९७६ के माघ सुदि ६ को इन धर्मात्मा सेठानी का देहांत हो गया।
अपने मातापिताका देहांत होनेपर इन बंधुओंन जातीय जामन और दानपुण्यम करीब पांच हजार रुपये खर्चे ।
इस पेढी द्वारा आजतक जुदा जुदा सब मिलाकर करीब तीस हजारका दान किया गया है । उनमसे मुख्य काम ये हैं
१ सं० १९८४ में उपाधान कराया । २ करेडा पार्श्वनाथ में एक देहरी बनवाई।
३ जिनदत्तगुरुकुल पालीताना और कन्याशाला फलौदीको रकमें दी। वराडप्रांतिक श्वेतांबर जैन कॉन्फरेंसके सहायक रहे ! अनेक छोटेमोटे कामोंमें देते रहे हैं। और कई स्वामीवत्सल किये।
सेठ मूलचंद्रजी, सेठ सोभागमलजी और सेठ पूनमचंद्रर्जा तीनों भाइयोंने अपने पिता की मृत्युके बाद दुकानको खूब तरक्की दी। सं० १९५९ में इन्होंने बंबईम 'मूलचंद सोभागमल' के नामसे एक पेढी शुरू की। धीरे धीरे यह पेढी खूब बढी.
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