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जैन-रत्न
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भावार्थ- यह बात कैसे आश्चर्यकी है कि, सूर्य-भक्त जब सूर्य, मेघोंसे ढक जाता है, तब तो वे भोजनका त्याग कर देते हैं; परन्तु वही सूर्य जब अस्तदशाको प्राप्त होता है, तब वे एक भोजन करते हैं ! जो रातमें भोजन नहीं करते हैं, वे एक महीनेमें एक पक्षके उपवासोंका फल पाते हैं क्योंकि रात्रिके चार प्रहर वे सदैव अनाहार रहते हैं । स्वजनमात्रके ( अपने कुटुम्बमेंसे किसीके ) मर जाने पर भी जब लोग सूतक पालते हैं, यानी उस दशामें अनाहार रहते हैं, तब दिवस-नाथ सूर्यके अस्त होने बाद तो भोजन किया ही कैसे जा सकता है ? और भी कहा है:
" देवस्त भुक्तं पूर्वाह्ने मध्याह्न ऋषिभिस्तथा । ____ अपराह्ने च पितृभिः सायाह्ने दैत्यदानवैः" ॥ " सन्ध्यायां यक्षरक्षोभिः सदा भुक्तं कुलोद्वह !।
सर्ववेलामतिक्रम्य रात्रौ भुक्तमभोजनम् " | इन श्लोकोंमें युधिष्ठिरसे कहा गया है कि:-हे युधिष्ठिर ! दिनके पूर्वभागमें देवता, मध्याह्नकालमें ऋषि, तीसरे प्रहरमें पितृगण साययंकालमें दैत्य दानव और संध्या समयमें यक्ष-राक्षस भोजन करते हैं। इन समयोंको छोड़कर जो भोजन किया जाता है वह अभोजन-दुष्ट भोजन होता है।
रातमें छः कार्य करना मना किया गया है उनमें रात्रिभोजन भी है । वह भी रात्रि भोजननिषेधके कथनको पुष्ट करता है जैसे
“ नैवाहुतिर्न च स्नानं न श्राद्धं देवतार्चनम् ।
दानं वा विहितं रात्रौ भोजनं तु विशेषतः" ॥
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