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जैन-दर्शन
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भावार्थ-आहुति, स्नान, श्राद्ध, देवपूजन, दान और खास करके भोजन रातमें नहीं करना चाहिए। इस विषयमें आयुर्वेदका मुद्रालेख भी यही है कि:" हृन्नाभिपद्मसंकोचश्चण्डरोचिरपायतः ।
अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीवादनादपि " ॥ भावार्थ-सूर्य छिप जानेके बाद हृदयकमल और नाभिकमल दोनों संकुचित हो जाते हैं, इसलिए, और सूक्ष्म जीवोंका भी भोजनके साथ भक्षण हो जाता है, इसलिए रातमें भोजन नहीं करना चाहिए । ____ एक दूसरेकी झूठन खाना भी जैनधर्ममें मना है । शुद्धता और समुचित शौचकी तरफ गृहस्थों को खास तरहसे ध्यान देना चाहिए । जैनशास्त्रकारोंने इस बातका खास तरहसे उपदेश दिया है । रसायन शास्त्र कहते हैं, कि बहुत समय तक मलमूत्र रहनेसे नाना भाँतिके विलक्षण जन्तु उत्पन्न होते हैं और जब वे उड़ते हैं तब उनके संक्रमणसे अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जैनशास्त्र भी इस बात को मानते हैं और इसलिए उन्होंने, खुली जगहमें मल मूत्र-त्यागनेके लिए कहा है।
संक्षेपमें इतना कहना काफी होगा कि जैनशास्त्रोंमें जिन आचार व्यवहारोंका प्रतिपादन किया है, वे सब विज्ञानके शुद्ध तत्वोंके साथ मिलते जुलते हैं। शास्त्रनियमानुसार यदि वर्ताव रक्खा जाता है तो, आरोग्यका लाभ उठानेके साथ ही लोकप्रियता, राज्य मान्यता, सुखी जीवन और आत्मोन्नतिका उद्देश बराबर सिद्ध होता है।
जब तक वस्तुज्ञानमें संदेह या भ्रान्ति होती है, तब तक मनुष्यकी प्रवृत्ति यथार्थ नहीं होती है । वस्तुतत्त्वकी परीक्षा प्रमाणद्वारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com