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जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध )
परिषद भरने और उसका कार्य करनेमें इन्होंने बहुत परिश्रम किया था । परिषदकी स्थापनासे एक बरस तक ये सेक्रेटरी भी रहे थे ।
सन् १९२९ में हिन्दु मुसलमानोंका हुल्लड हुआ था । उसमें इन्होंने पन्द्रह दिन तक अत्यंत महनतसे मांडवी मुहल्लेको शान्त रक्खा था । इस मुहल्लेर्म हिन्दु और मुसलमान दोनों कौमें बहुत बड़ी संख्या में बसती हैं । पुन्सीमाईका दोनों कौमों में प्रभाव है । इसी हेतुसे इन्होंने दोनों को शांत रखने में सफलता राई थी ।
इनके पांच लग्न हुए । पहला लग्न सन् १८९५ में कच्छतेरावाले सा राघवजी सोदे चांपाणीकी लड़की मांकबाईके साथ हुए। उनसे दो लड़कियाँ हुई और मर गई । सन् १९०५ मे बाईका भी देहांत हो गया ।
दूसरे लग्न कच्छ नलिया के सा मूरजी नत्थूभाई ककाकी लड़की वेजबाईके साथ सन् १९०७ में हुए । उनसे एक लड़की सन् १९१० में हुई । सुवावडमें ही बाईका देहांत हो गया ।
तीसरे लग्न अरीखाणाके सा वसनजी माणजी जीवराजकी लड़की सोनबाईके साथ सन् १९११ में हुए । सन् १९१६ में बाईका देहांत हो गया ।
चौथे लग्न कच्छ साहेरा के सेठ देवजी खेतसीकी लड़की नवल बाईके साथ सन १९१६ में हुए । उनसे बार बालक हुए ।
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