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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन
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सरकारने उन्हें उनकी व्यापारी कुशलता और उदार सखा
वर्तोंके कारण जे. पी. की पदवी दी थी ।
श्री कच्छी दशा ओसवाल जैनजातिने सन् १९१७ में ऑनरेबल सर पुरुषोत्तमदास ठाकुरदासकी अध्यक्षता में एक बहुत बड़ा मेलावड़ा (जल्सा) किया था और महाजन (पंचायत) की तरफ से उन्हें, सरपंच ( प्रमुख ) की पगड़ी बँघवाकर बहुत बड़ा मान दिया था । वे अनेक बरसों तक पंचायत के प्रमुख रहे थे । मुर्तिपुजक श्वेतांबर समाजने भी श्वेतांबर जैन कॉन्फरेंस के ग्यारहवें अधिवेशन के जो कलकत्तेमें हुआ था इनको प्रमुख बनाया था । कच्छी समाजमेंसे कॉन्फरेमके ये सबसे पहले प्रमुख थे । उस समय जब ये कलकत्ते गये थे तब यहाँ से एक स्पेशल ट्रेन द्वारा गये थे और बंबई के प्रतिनिधियोंको अपने साथ ले गये थे । इन्होंने प्रमुख स्थानसे जो मननीय भाषण दिया था उसकी जैन और अजैन सभी पत्रोंन मुक्त कंठसे प्रशंसा की थी '
इनका दान सात्विक होता था । मानकी इच्छा उसके पीछे नहीं होती थी। एक बार एक सज्जन खेतसिंह सेठ के पास आये और बोले, " अगर आप किसी सरकारी स्कूल या कॉलेजमें रुपये सवा दो लाखका दान दें, तो गवर्नमेंटमें आपका बहुत सम्मान होगा और आपको कोई ऊँची पदवी भी मिलेगी।” खेत सिंह सेठने हँसते हँसते जवाब दिया :- "भले आदमी !
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