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श्वेताम्बरं मूर्तिपमक जैन
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बात जानकर किस जैन युवकका हृदय अभिमान और आनंदसे न उछल उठा होगा ? जैन समानकी जुदा जुदा संस्थाओंके साथ संबंध रखनेवाले वीरचंदभाईको कौन नहीं पहचानता है ? इतना होने पर भी प्रतिमाशाली व्यक्तित्वकी कुछ विशेषताओंका यहाँ पर उल्लेख करना आवश्यक है। उनकी वर्तमान प्रभुता किसी अकस्मातका परिणाम नहीं है। यह अबतक प्रयत्नपूर्वक विकसित किये गये गुणोंका परिणाम है। वे गरीब कुटुंबमें जन्मे, माधारण स्थितिमें पले पोसे भावनगर के जैनबौर्डिगमें रहकर कॉलेजमें पढ़े और ग्रेजुएट हुए। उसके बाद बड़ी पूँजीके बगैर ही व्यापारमें लगे। उत्तरोतर उनका व्यापार बढ़ा और उसके साथ ही धनकी आमदनी भी बढने लगी। तो भी उनकी स्थिति ऐसी नहीं है जो उनको बंबईके बड़े सेठोंमें गिनने दे। ऐसी साधारण हालत होते हुए भी उन्होंने कभी गरीबों को मदद देते समय और विद्यार्थियोंको ऊँची शिक्षा प्राप्त करनेके लिए मदद देते समय, अपनी स्थितिका कुछ खयाल नहीं किया। उन्होंने अबतक अनेक गरीबोंके कलेजे ठंडे किये होंगे और द्रव्य न होनेसे पढना बंद कर देने वाले अनेक विद्यार्थियों को सहायता देकर उनसे युनिवरसिटिकी ऊँची परीक्षाएँ पास कराई होंगी। उनमें अपूर्व सौजन्य और उदारता हैं। कोई मदद माँगने आवे, किसी संस्थाके चंदेकी फहरिस्त आवे, किसी संस्थाके कामका उत्तरदायित्व लेने के लिए
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