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जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध )
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इतनी पूँजी नहीं थी कि, ये चार बरसकी कॉलेजकी पढ़ाई पूरी करते । तो भी इन्होंने साहस न छोड़ा और ज्यों त्यों करके ये सन् १९०३ में बी. ए. पास हुए । इन्होंने बी. ए. पास किया उस वक्त तक में इनके पिता जो कुछ मिल्कियत छोड़ गये थे वह समाप्त हो चुकी थी । और ऊपर से १२००) रु. कर्जा भी हो गया था । परन्तु इन्होंने किसी तरहसे भी अपना साहस कम न होने दिया था ।
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इनका उत्माह इनका धैर्य और कॉलेनकी इनकी प्रगति देखकर हरेक यह अनुमान करता था कि मकनजी एक होनहार व्यक्ति है । इनके पास धनका अभाव था; परन्तु गुणोंका धन मौजूद था । इसीलिए कलकत्तेके प्रसिद्ध व्यापारी श्री इंद्रजी सेठने अपनी पुत्री श्रीमती गुलाबबाई ( लाडकुँवर ) का व्याह इनके साथ कर दिया । इन दोनोंकासा अपार प्रेम स्नेह-लग्न करनेवालों में भी कठिनता से मिलता है । मकनजीभाईका कौटुंबिक और सांसारिक सुख इनकी स्नेहमयी पत्नी के कारण है । श्रीमती गुलाबबाईने अपनी सेवा और अपने स्नेहको अपने कुटुंबही में सीमित न रक्खा । समाजके लिए भी उसको अर्पण किया और उसीका यह फल है कि श्रीमती गुलाबबाईको जैनस्त्रियोंमें अग्रस्थान मिला है । अपनी पत्नीको अपनी ही तरह समाज सेवामें लगी हुई और समाज में सम्मान पाती हुई देखकर मकनजीभाईका हृदय कितना आनंदित होता होगा ?
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