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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन ६९ वीरचंदभाई १२ वर्षकी उम्र में, सातवीं गुजरातीका अभ्यास पूरा कर, अपने भाई और पिताके साथ व्यापारमें लगे। चार वर्ष तक दुकानमें रहे । फिर सत्रहवें वर्ष में इनको इंग्लिश पढनेके साधन मिले । एक वर्षमें इन्होंने इंग्लिशकी चार क्लासोंका अभ्यास पूरा किया और रानकोट ( काठियावाड़ ) में जाकर इंग्लिश पांचवीं क्लासमें दाखिल हुए । मेट्रिक पास कर मावनगर में शामलदास कॉलेनमें दाखिल हुए। वहासे सन् १९१८ में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण हुए और ग्रेन्युएट बने । भावनगरमें पढ़ते हुए इन्होंने अपने भतीनोंको अपने पास रखा और उनको अभ्याप्त आगे बढ़ानेमें, पूरी मदद दी।
ये ग्रेज्युएट होकर बंबई आये । पूर्व आफ्रिकाके साथ इन्होंने आयात निर्यात ( Export import ) का धंधा शुरू किया । थोड़े दिन बाद अपने भतीजे फूलचंदको आफ्रिका भेजा। खुद भी सन् १९२० और १९२६ में पूर्व आफ्रिका हो आये। इनके साहस और चरित्रका वहाँके लोगोंपर अच्छा प्रभाव पड़ा। इस प्रमावने इनके व्यापारमें बहुत मदद पहुंचाई । इन्होंने रोज. गारमें सफलता प्राप्त कर लोगोंकी इस धारणाको झूठा ठहराया कि अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग व्यापार नहीं कर सकते हैं।
इन्होंने धीरे धीरे अपने व्यापारको बढ़ाया और इस समय इनका व्यापारिक संबंध पूर्वआफ्रिकाके शहर मोम्बासा, नैरोबी, जंजीबार और दारेसलाम के साथ मुख्य तया है।
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