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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन दूसरे लग्न सुथरीवाले चांपसी द्धाकी लड़की उमरबाईके साथ हुए और आठ बरसके बाद वे भी सन्तानविहीन चली गई।
तीसरे लग्न धननी वरसंग पालाणीकी लड़की लीलबाईके साथ हुए।
सं० १९६० में इनके पिता द्धामाईका देहान्त हुआ। वे हीरजी खेतसीकी कंपनीमें हिस्सेदार थे। ___ ये सं० १९६४ में हीरनी खेतसीकी कंपनीमें काम करने लगे सं० १९६५ में दो सौ रुपये सालाना वेतन मिलने लगा
और सं० १९७० तक बारह सौ सालाना हो गये। सं० १९७१ में ये भी हीरनी खेतसीकी कंपनी में भागीदार हुए । सं० १९७४ में भवानजी धनजीके नामसे, पदमसी पासवीरकी भागीदारीमें, रुईका अत्या-व्यापार शुरू किया। पदमसीमाईका देहान्त हो गया इससे उसी साल धंधा बंद करना पड़ा।
ये सं० १९७५ में अर्जन खीमजीकी कंपनी में हिस्सेदार हुए । सं० १९७८ तक रहे। फिर सं० १९७९ में वीरजी लद्धाके नामसे रुईका व्यापार शुरू किया। वह आजतक चालु है।
सं० १९८६ के कार्तिक सुद १३ को इनकी माता दिमु. बाईका देहान्त हुआ तब दस हनार रुपये दानमें दिये । वे रुपये पालीतानेमें देवनी पुन्सीकी धर्मशालामें एक रसोडा चालू है, उसमें दिये और रसोडे पर इस तरह का बोर्ड लगवाया
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