________________
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन उठाया था। उपधानकी क्रिया पन्यासनी दानसागरजी महाराजने कराई थी।
मालसीभाई बुद्धिवान, विवेकी, विनयवान और कार्यदक्ष पुरुष ये । उनकी पत्नी लाखबाई शान्त स्वभाववाली और सच्चरित्रवाली थी। उनकी संतानोंमें मालप्तीमाईकी बुद्धि और लाखबाईकी शान्ति गुण आये हैं । लाखबाई सं० १९५४ में और मालसीमाई सं० १९७२ में रामशरण हुए । मालमीमाईके संतानोंने अपने कुलकी कीर्ति बढ़ाई है। अच्छे कामोंमें हमेशा इन्होंने अपना माग दिया है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com