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श्रेताम्बर मूर्तिपूनक जैन तनमन धनसे इनकी सहायता करते रहे। अपने जीवनकी अंतिम घड़ी तक वे बोर्डिंग और पाठशालाके सलाहकार कार्यकर्ता और सहायक थे। ____ लखमसीमाईके दो लग्न हुए थे। पहला लग्न सुनापुर (कच्छ) के रामजी हीरजीकी कन्या श्रीमती पूरबाईके साथ हुए थे। इनके उदरसे तीने बच्चे हुए। एक बचपनही में गुजर गया। दूसरी कन्या लीलबाई थीं। वे भी कुछ दिन वैधव्य
और पुत्रवियोग भोगकर दुनियासे चली गई। पीछेसे पूरबाईका भी देहान्त हो गया। तीसरे दामनीमाई मौजूद हैं । ___इन्हीं दिनोंमें इनकी माता तेनबाई भी बीमार पड़ीं । इन्होंने और इनके भाई डॉक्टर पुन्सीने बहुत सेवा की। तेजबाईका मी देहांत हो गया। ये बाई अति समर्थ, कार्यकुशल और बुद्धिमान थीं।
लखमसीमाईके दूसरे लग्न तुंगी गाव (कच्छ) के शा. वीरजी डाह्याभाईकी कन्या श्रीमती मचीबाई उर्फ रतनबाईके साथ हुए थे। उनसे दो लड़के और एक कन्या उत्पन्न हुए । कन्या गुजर गई । लड़के बंकिमचंद्र और प्रेमचंद मौजूद हैं। ___ सन् १९२४ के जून महीनेमें लखमसीमाईको ‘स्मॉल कॉम कोर्ट के एडिशनल नजका पद मिला और उसी साल ३० वीं दिसंबरको उनका देहान्त हो गया। इस नर नके चले जानेसे भनेक शोक समाएँ हुई।
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