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श्वेताम्बर मूर्तिपूमक जैन
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कच्छी दमा ओसवाल जातिमें ये सबसे पहले वकील हुए। इससे नातिने इन्हें सर गोकुलदास कानदास पारेख नाइटकी प्रमुखतामें मानपत्र दिया । लखमसीभाईने उत्तर देते हुए कहा:" यह मान मुझे नहीं मेरी पूज्य माता तेजबाईको है। " दूमरी भी कई संस्थाओंने उनको मानपत्र दिये।
सन् १९०२ में उन्होंने सनद लेकर स्मॉल कॉजेज कोर्टमें वकालत करना शुरू किया । इक्कीस बरस तक उन्होंने बराबर वकालत की और लोगोंमें, वकील मंडळमें तथा न्यायाधीशोंमें अच्छा मान व प्रेम प्राप्त किया। इस प्रेम संपादनका यह परिणाम हुआ कि सन् १९२३ में वे जे. पी. हुए सन् १९२४ में वे स्मॉल कॉजेन कोर्ट में एडिशनल जन मुकर्रिर किये गये ।
सन् १९०४ में मांडवीकी तरफसे बंबई म्युनिसिपल कोर्पोरेशनके मेम्बर चुने गये । तीन बरस मेम्बर रहकर उन्होंने अनुभव किया कि, समयके अमावसे कोर्पोरेशनके काममें चाहिए उतना योग वे नहीं दे सकते हैं। इसलिए उन्होंने खुद कोर्पोरेटर बननेका कोई प्रयास नहीं किया; परन्तु अपने छोटे माई डॉ. पुन्सीमाईको इसके लिए खड़ा किया और प्रयत्न करके उन्हें चुनवा दिया।
सन् १९०४ में वे कच्छी दसा ओसवाल महाजनके मंत्री चुने गये, बादमें तेरह बरस तक महाजनके उपप्रमुख रहे और सन् १९२४ में जातिने अपने प्रमुख बनाये । महानन कमेटि
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