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जैन-रत्न
भावार्थ-तपस्वियोंको, मुख्यतया रातमें पानी भी नहीं पीना चाहिए और विवेकी गृहस्थोंको भी नहीं पीना चाहिए। . पुराणोंमें 'प्रदोषव्रत' 'नक्तव्रत' बताये गये हैं । इनसे कई रात्रिभोजन करना सिद्ध करते हैं। मगर इससे रात्रिभोजननिषेधक जो वाक्य हैं, वे अयथार्थ ठहरते हैं । शास्त्रोंमें पूर्वापर विरोधरहित कथन होता है । इसलिए उनका विचार भी इसी तरह करना चाहिए।
'प्रदोषो रजनीमुखम् । इसका अभिप्राय होता है, रजनीमुख-रात होनेके दो घड़ी पहिलेके समय-को प्रदोष समझना । अर्थात् रात होनेमें दो घड़ी बाकी रहती है, उस समयको प्रदोष कहते हैं। ऐसा ही अर्थ व्रतोंके सम्बन्धमें करनेसे रात्रि-भोजननिषेधक वाक्योंके साथ विरोध नहीं होगा । यद्यपि ' नक्त' शब्दका मख्य अर्थ रात्रि होता है, तथापि शास्त्रकार और व्याख्याकार बताते हैं कि ' नक्त' शब्दका अर्थ रात होनेके दो घड़ी पहिलेका समय लेना चाहिए; क्योंकि ऐसा करनेसे रात्रि भोजननिषेधक प्रमाणभत वाक्योंमें बाधा न होगी।
१-शब्दका मुख्य अर्थ लेनेमें यदि विरोध मालूम हो तो गौणशक्तिसे ( लक्षणासे) उचित अर्थ ग्रहण करना चाहिये । जैसे--' अहमदाबाद' शहरमें रहनेवाला कहता है कि 'मैं अहमदाबाद' रहता हूँ '। इसी प्रकार अहमदाबादके पास गाँवमें रहनेवाला भी कहता है कि, 'मैं अहमदाबाद रहता हूँ।। यद्यपि शब्दार्थ दोनों वाक्योंका समान होता है; तथापि भाव भिन्न है । यदि दोनोंका भाव समान समझा जायगा तो वास्तविक बात जाती रहेगी। इसलिए इसका एक जगह अर्थ होगा 'खास अहमदाबाद शहर' और दूसरी जगह अर्थ होगा 'अहमदाबादका समीपवर्ती कोई गाँव।' इस प्रकार मुख्य और गौण दो तरहके अर्थ हरेक जगह प्रसंगानुसार, उपयोगमें लाये जाते हैं । इससे सिद्ध होता है कि, मुख्य
अर्थको कहनेवाले शब्दसे मुख्य अर्थके समीपकी वस्तु भी, प्रकरणानुसार समझ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com