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जैन-दर्शन
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यहाँ हम थोडासा, यह भी बता देना चाहते हैं, कि इस विषयमें धर्मशास्त्र क्या कहते हैं ? हिन्दु-धर्मशास्त्रकारोंमें 'माकंड' मुनि प्रख्यात हैं। वे कहतेहैं किः
" अस्तं गते दिवानाथे आपो रुधिरमुच्यते । __ अन्नं मांससमं प्रोक्तं मार्कण्डेन महर्षिणा ॥" भावार्थ-मार्कण्ड ऋषि कहते हैं कि सूर्यके अस्त हो जाने पर जल पीना मानो रुधिर पीना है और अन्न खाना मानो मांस खाना है। कूर्मपुराणमें भी लिखा है कि:" न द्रुह्येत् सर्वभूतानि निर्द्वन्द्वो निर्भयो भवेत् । न नक्तं चैवमश्नीयाद् रात्रौ ध्यानपरो भवेत् ॥"
(२७ वा अध्याय ६४५ वा पृष्ठ) भावार्थ-मनुष्य सब प्राणियों पर द्रोहरहित रहे, निर्द्वन्द्व और निर्भय रहे; तथा रातको भोजन न करे और ध्यानमें तत्पर रहे।
और भी ६५३ वें पृष्ठपर लिखा है कि:" आदित्ये दर्शयित्वाऽन्नं भुञ्जीत प्राङ्मुखो नरः ।" भावार्थ-सूर्य हो उस समय तक-दिनमें गुरु या बड़ेको दिखा, पूर्व दिशामें मुख करके भोजन करना चाहिए। ___ अन्य पुराणों और अन्य ग्रंथोंमें भी रात्रिभोजनका निषेध करने. वाले अनेक वाक्य मिलते. हैं । युधिष्ठिरको संबोधन करके यहाँतक कहा गया है कि, किसीको भी, चाहे वह गृहस्थ हो या साधु, रात्रिमें जल तक नहीं पीना चाहिए । जैसे:___“नोदकमपि पातव्यं रात्रावत्र युधिष्ठिर,।
तपस्विनां विशेषेण गृहिणां च विवेकिनाम् ॥"
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