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जैन-रत्न
था। उसमें जलनजटी नामका विद्याधर राजा चौथा भव (श्री- राज्य करता था। उसके अर्ककीर्ति नामका पुत्र षेणका जीव और स्वयंप्रभा नामकी पुत्री थी। अर्ककीर्तिका ब्याह अमिततेज विद्याधरोंके राजा मेघवनकी पुत्री ज्योतिर्माला हुआ) के साथ हुआ । श्रीषेण राजाका जीव सौधर्म
कल्पसे च्यवकर ज्योतिर्मालाके गर्भमें आया । ज्योतिर्मालाने उस रातको, अपने तेजसे आकाशको प्रकाशित करते हुए एक सूर्यको अपने मुखमें प्रवेश करते देखा । समयपर पुत्रका जन्म हुआ । उसका नाम अमिततेज रखा गया । अमिततेतजके दादा ज्वलनजटीने अर्ककीर्तिको राज्य देकर जगन्नंदन और अभिनंदन नामक चारण ऋषिके पाससे दीक्षा ले ली।
सत्यभामाका जीव भी च्यवकर ज्योतिर्मालाके गर्भसे पुत्री रूपमें उत्पन्न हुआ। उसका नाम सुतारा रखा गया।
अर्ककीर्तिकी बहिन स्वयंप्रभाका ब्याह त्रिपृष्ठ वासुदेवके साथ हुआ था। अभिनंदिताका जीव सौधर्मकल्पसे च्यवकर स्वयंप्रभाके गर्भसे पुत्ररूपमें उत्पन्न हुआ। उसका नाम श्रीविजय रखा गया। शिखिनंदिताका जीव भी प्रथम कल्पसे ज्यवकर स्वयंप्रभाके गर्भसे पुत्री रूपमें उत्पन्न हुआ। उसका नाम ज्योतिःप्रभा रखा गया। स्वयंप्रभाके एक विजयभद्र नामका तीसरा पुत्र भी जन्मा।
सत्यभामाके पति कपिलका जीव अनेक योनियों में फिरता
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