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जैन-रत्न
सात दिनके बाद जब गोशालक कालधर्म पाया तब गौतम स्वामीने पूछा:-" भगवन् , गोशालक मरकर किस उठा कर अपने शरीरपर चुपड़ने लगा । जमीनपर लोट लोटकर आक्रंदन करने लगा। उसकी हालत पागलकीसी हो गई ।
पुत्राल नामका एक पुरुष गोशालकका भक्त था । वह रातके पहले और पिछले पहरमें धर्म-जागरण किया करता था । एक दिन उसको शंका हुई कि हल्ला ( कीट विशेष ) का संस्थान कैसा होगा ? चलूं अपने सर्वज्ञ गुरुसे पूछू । पुत्राल जब हालाहलाके यहाँ पहुँचा तब उसने गोशालकको नाचते, कूदते, गाते, रोते देखा । पुत्रालको गोशालककी ये क्रियाएँ अच्छी न लगीं । वह लौट गया। ___ गोशालकके शिष्य पानी लेकर आर हे थे । उन्होंने पुत्रालको जल्दी २ घरकी तरफ जाते देखा । निमित्तज्ञानसे उसके मनकी बात जानकर वे बोले:--" महानुभाव ! तुमको तृण गोपालिकाका संस्थान जाननेकी इच्छा है । आओ सर्वज्ञ गुरुसे पूछ लो। गुरुका निर्वाणसमय नजदीक है । इसलिए वे नृत्य, गान इत्यादि कर रहे हैं।" पुत्राल बोला:-" महाराज ! मैं घर जाकर आता हूँ।"
गोशालकके शिष्योंने पुत्रालके आनेके पहले ही गोशालकको ठीक तरहसे बिठा दिया और पुत्रालका प्रश्न भी बता दिया । पुत्राल आया । गोशालकको नमस्कार करके बैठा। गोशालक बोलाः-“तुम्हें तृण गोपालिकाका संस्थान जाननेकी इच्छा है । वह संस्थान (आकृति) बाँसकी जड़के जैसा होता है।" पुत्राल संतुष्ट होकर अपने घर गया।
गोशालकने एक दिन अपना देहावसान निकट जान अपने शिष्योंको बुलाया और कहा:-“देखो, मैं सर्वज्ञ नहीं हूँ सर्वज्ञताका मैंने ढौंग किया था । मैं सचमुच ही महावीर स्वामीका शिष्य मोशालाक हूँ। मैंने घोर पाप किया है । अपने गुरुपर तेजोलेश्या रखकर उन्हें बहुत कष्ट पहुँचाया है । और अपने दो गुरु भाइयोंको-जिन्होंने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com