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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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७-बीज-इसका यह फल है कि, जैसे ऊसर भूमिमें बीज डालनेसे फल नहीं मिलता वैसे ही कुपात्रको धर्मोपदेश दिया जायगा; परंतु उसका कोई परिणाम नहीं होगा । हाँ कभी कभी ऐसा होगा कि जैसे किसी आशयके बगैर किसान, घुणाक्षर न्यायसे अच्छे खेतमें बुरे बीजके साथ उत्तम बीज भी डाल देता है वैसे ही श्रावकोंसे सुपात्रदान भी कर दिया जायगा ।
८-कुंभ-इसका यह फल होगा कि क्षमादि गुणरूपी कमलोंसे अंकित और सुचरित्ररूपी जलसे पूरित एकांतमें रक्खे हुए कुंभके समान महर्षि विरले ही होंगे । मगर मलिन कलशके समान शिथिलाचारी लिंगी ( साधु ) जहाँ तहाँ दिखाई देंगे। वे ईर्ष्यावश महर्षियोंसे झगड़ा करेंगे और लोग ( अज्ञानताके कारण ) दोनोंको समान समझेंगे । गीतार्थ मुनि अंतरंगमें उत्तम स्थितिकी प्रतीक्षा करते हुए और संयमको पालते हुए बाहरसे दूसरोंके समान बनकर रहेंगे।" राजाको वैराग्य हुआ और राजपाट सुखसंपत्तिको छोड़
. उसने दीक्षा ली और घोर तप कर राजा हस्तिपालको दीक्षा र
" मोक्षपदको प्राप्त किया। गौतम स्वामीने पूछा:-" भगवन् ! तीसरे आरेके अंवमें
भगवान ऋषभ देव हुए । चौथे कल्की राजा आरेमें अजितनाथादि तेईस तीर्थकर
हुए जिनमेंके अंतिम तीर्थकर आप हैं। अब दुःखमा नामके पाँचवें आरेमें क्या होगा सो कृपा करके फर्माइए !"
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