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जैन-दर्शन
है उसका अर्थ · योगवाला' होता है । योगका अर्थ है, शरीरादिके व्यापार । केवलज्ञान होनेके बाद भी शरीरधारीके गमनागमनका व्यापार, बोलनेका व्यापार आदि व्यापार होते हैं, इसलिए वे शरीरधारी केवली · सयोग' कहलाते हैं। __उन केवली परमात्माओंके, आयुष्यके अन्तमें, प्रबल शुक्लध्यानके प्रभावसे, जब सारे व्यापार रुक जाते है, तब उनको जो अवस्था प्राप्त होती है उसका नाम___ अयोगीकेवली गुणस्थान है । अयोगीका अर्थ है सर्वव्यापाररहित-सर्वक्रियारहित । ___ ऊपर यह विचार किया जा चुका है, कि आत्मा गुणश्रेणियोंमें
आगे बढ़ता हुआ, केवलज्ञान प्राप्त कर, आयुप्यके अन्तमें अयोगी वन तत्काल ही मुक्ति प्राप्त कर लेता है । यह आध्यात्मिक विषय है। इसलिए यहाँ थोडीसी आध्यात्मिक बातोंका दिग्दर्शन कराना उचित होगा।
अध्यात्म
संसारकी गति गहन है । जगत्में सुखी जीवोंकी अपेक्षा दुःखी जीवोंका क्षेत्र बहुत बड़ा है । लोक आधि-न्याधि और शोक-संतापसे परिपूर्ण है। हजारों तरहके सखसाधनोंकी उपस्थितिमें भी, सांसारिक वासनाओमेसे दुःखकी सत्ता भिन्न नहीं होती । आरोग्य, लक्ष्मी, सुवनिता और सत्पुत्रादिके मिलने पर भी दुःखका संयोग कम नहीं होता । इससे यह समझमें आ जाता है कि दुःखसे सुखको भिन्न करना-केवल सुखभोगी बनना बहुत ही दुःसाध्य है।
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