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जैन-दर्शन
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योग्य मात्र शुद्ध चैतन्य आत्मा ही है।" यह उपदेश बहुत महत्त्वका है । प्राचीन आचार्य, ऐसे उपदेशोंको अनादि मोहवासना
ओंके भीषण संतापको नष्ट करनेकी रामबाण औषध समझते थे । __ यदि उक्त सूत्रका अर्थ यह किया जाय कि-" जगत्के सारे पदार्थ गधेके सींगकी तरह असत् हैं " तो बहुतसी कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैं । इस अर्थकी अपेक्षा ऊपर जो अर्थ बताया गया है वही उचित और सबके अनुभवमें आने योग्य है । दृश्यमान बाह्य पदार्थोकी असारताका वर्णन करते हुए जैन महात्मा भी उनको • मिथ्या ' बता देते हैं । इससे यह कैसे माना जा सकता है कि वस्तुतः दुनियामें कोई पदार्थ ही नहीं है ? यह ठीक है कि संसारका सारा प्रपंच असार है, विनाशी है, अनित्य है। इस मतका कोई विरोधी नहीं है। जैनाचार्यों ने इसी मतको प्रतिपादन करते हुए संसारको मिथ्या बताया है। परन्तु इससे सर्वानुभव सिद्ध जगतका अत्यंत अभाव सिद्ध नहीं हो सकता है। कर्भकी विशेषता ।
अध्यात्मका विषय आत्मा और कर्मसे संबंध रखनेवाले विस्तृत विवेचनसे पूर्ण है । हम आत्मस्वरूपके संबंधका कुछ विचार कर चुके हैं, अब कर्मकी विशेषताके संबंधमें कुछ विवेचन करेंगे।
संसारके दूसरे जीवोंकी अपेक्षा मनुष्योंकी ओर अपनी दृष्टि जल्दी जाती है। कारण यह है कि मनुष्य-जातिका हम लोगोंको विशेष परिचय है , इसलिए उनकी प्रकृतिका मनन करनेसे, कई आध्यात्मिक बातें विशेषरूपसे स्पष्ट हो जाती हैं।
संसारमें मनुष्य दो प्रकारके दिखाई देते हैं। प्रथम पवित्र जीवन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com