________________
जैन-दर्शन
५२१
~
~~
~~urrn.
~
~
~
~
~
~~
~
vvvvvvvvharvvvvv.
.
प्रकृतिके शासनमें न कोई अपराधी दंड भोगे विना रहा है और न आगे रहेहीगा। ___ आध्यात्मिक जीवन प्राप्त करना सरल नहीं है । इसके लिए
आचार-व्यवहार शुद्ध रखनेकी बहुत जरूरत है । यह बात खास विचारणीय है कि, कौनसे आचरणोंसे जीवन स्वच्छ और उन्नत बनता है । जैनशास्त्रोंमें इस पर बहुत विचार किया गया है और बताया गया है कि, कैसे आचार रखने चाहिएँ । वसिष्ठ स्मृतिके छठे अध्यायके तीसरे श्लोकमें लिखा है कि:-" आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः" यानी आचारविहीनको वेद भी पवित्र नहीं बना सकते हैं-वेदोंके जाननेवाले भी यदि आचारहीन होते हैं तो वे अपवित्र ही रहते हैं। जैनशास्त्रोंमें बताया गया है कि आचार कैसे रखने चाहिएँ, उसका यहाँ कुछ उल्लेख कर देना आवश्यक है।
जैन-आचार
साधुधर्म और गृहस्थधर्मका यद्यपि पहिले सामान्यतया विवेचन हो चुका है, तथापि आचारसे संबंध रखनेवाली बातोंका विवेचन रह गया था । अतः यहाँ उन्हीं बातोंका कुछ विवेचन किया जायगा ।
साधुओंका आचार ।
जैन- आचारशास्त्रोंमें साधुओंके लिए कहा गया है कि वे इक्का, गाडी, घोड़े आदि किसी भी सवारीपर न चढ़े । वे सब जगह पैदल
१-यदि मार्गमें नदी आ जाय और, स्थलद्वारा जानेका आसपासमें कोई मार्ग न हो, तो साधु नावमें बैठकर परले पार जा सकते है; मगर यह ध्यान रखना चाहिए कि, सामने किनारा दिखाई देता हो तब ही नाव पर चढ़नेकी आज्ञा है, अन्यथा नहीं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com