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२४ श्री महावीर स्वामी - चरित
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किया । फिर सूक्ष्म काययोगको - जिसमें सारी क्रियाएँ बंद हो जाती हैं-रोककर समुच्छिन्न-क्रिया नामक चौथा शुक्ल ध्यान प्राप्त किया । फिर पाँच हस्व अक्षरोंका उच्चारण किया जा सके इतने काल मानवाले, अव्यभिचारी ऐसे शुक्लध्यानके चौथे पाये द्वारा - पपीते के बीजकी तरह - कर्मबंध से रहित होकर, यथा स्वभाव रजुगति द्वारा उर्द्ध गमन कर मोक्षमें गये । उस वक्त जिनको लव मात्रके लिए भी सुख नहीं होता है ऐसे नारकी जीवोंको भी एक क्षणके लिए सुख हुआ ।
वह चंद्र नामका संवत्सर था, प्रीतिवर्द्धन नामका महीना था, नंदिवर्द्धन नामका पक्ष था और अग्निवेस नामका दिन था । उस रातका नाम देवानंदी था । उस समय अर्च नामका वै, शुल्क नामका प्राण, सिद्ध नामका स्तोक, सर्वार्थसिद्ध नामका मुहूर्त और नाग नामका करण था । उस समय बहुत ही सूक्ष्म कुंधू कीट उत्पन्न हुए थे । वे जब स्थिर होते थे तब दिखते भी न थे । अनेक साधुओंने और साध्वियों ने उन्हें देखा और यह सोचकर कि अब संयम पालना कठिन है, अनशन कर लिया ।
विक्रम सं. ४७१ ( ई. स. ५२८ ) पूर्व कार्तिक वदि अमावस के दिन महावीरस्वामी मोक्षमें गये ।
१ इसका नाम उपशम भी है । २ इसका दूसरा नाम निरति है । ३ सात स्तोक या ४९ श्वासोश्वास प्रमाणक । एक कालविभाग ।
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