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जैन-रत्न
शब्द 'सम' उपसर्गपूर्वक 'स' धातुसे बनता है । 'स' का अर्थ 'भ्रमण करना होता है । ' सम् ' उसी अर्थका पोषक है। चौरासी लाख जीवयोनिमें भ्रमण करना संसार है और उसमें फिरनेवाले जीव 'संसारी' कहलाते हैं। दूसरी तरहसे चौरासी लाख जीवयोनियोंको भी 'संसार' कह सकते हैं । आत्माकी कर्मबद्ध-अवस्थाका नाम भी संसार है । इस तरह संसारसे संबंध रखनेवाले जीव 'संसारी' कहलाते हैं । इससे संसारी जीवोंकी सरल व्याख्या यह है कि, जो जीव कर्मबद्ध हैं, वे ही संसारी हैं। ___ संसारी जीवोंके अनेक भेद हो सकते हैं, परन्तु उनके त्रस और स्थावर दो ही भेद मुख्यतया किये गये हैं। पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय, ये पाँचों 'स्थावर' कहलाते हैं। ' स्थावर' शब्दका अर्थ स्थिर रहना होता है; परन्तु यह अर्थ 'वायु' और 'अग्नि में घटित नहीं हो सकता है, इसलिए स्थावरका अर्थ शब्दार्थकी अपेक्षासे ग्रहण नहीं किया जाता है । यह रूढिसे 'एकेन्द्रिय' जीवोंके लिए उपयोगमें आता है । ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय कहलाते हैं; क्योंकि इनके एक स्पर्शन इन्द्रिय ( चमडी ) ही होती है। इनके दो भेद होते हैं,-सूक्ष्म और बादर । सूक्ष्म पृथ्वीकाय, सूक्ष्म जलकाय, सूक्ष्म आनकाय, सूक्ष्म वायुकाय, और सूक्ष्म वनस्पतिकाय जीव सारे संसारमें व्याप्त हैं। ये अत्यन्त
१–आधुनिक वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि सारी पोली जगह-सारा आकाश सक्ष्म जीवोंसे भरा हुआ है । वैज्ञानिकोंने शोध करके यह भी बताया है कि, 'थेकसस' नामके जीव सबसे सूक्ष्म हैं। ये सूईके अग्रभाग पर, अच्छी तरहसे, एक लाख बैठ सकते हैं।
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