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जैन-दर्शन
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समझ सकता है; और विपरीत स्थितिमें गौते खाया करता है। मोहकी लीलाके हजारों उदाहरण हम रातदिन देखते हैं। आठों कर्मोमेंसे यह कर्म आत्म-स्वरूपकी खराबी करनेमें नेताका कार्य करता है । इस कर्मके दो भेद हैं, तत्त्वदृष्टिको रोकनेवाला 'दर्शनमोहनीय ' और चारित्रको रोकनेवाला 'चारित्रमोहनीय'।
आयुष्य कर्मके चार भेद हैं,-देवायु, मनुष्यायु, तिर्यंचायु और नरकायु । यह कर्म बेड़ीका कार्य करता है । जब तक पैमें बेड़ी होती है, तब तक मनुष्य स्वतंत्रतासे भाग दौड़ नहीं कर सकता है, वैसे ही जब तक आयु कर्म होता है तब तक जीव देवगति, मनुष्यगति, तिर्यचगति या नरकगतिसे-जिसमें वह होता है-निकल. नहीं सकता है। __ नाम कर्मके अनेक भेद-प्रभेद हैं। अच्छा या बुरा शरीरका संगठन, सुरूप या कुरूपकी प्राप्ति, यश या अपयशका मिलना सौभाग्य या दुर्भाग्य और सुस्वर या दुःस्वरका होना आदि कई बातोंका आधार इसी नाम कर्म पर है। जैसे चित्रकार भले या बरे चित्र बनाता है, वैसे ही यह कर्म भी जीवको विचित्र स्थितियोंमें रखता है।
गोत्र कर्मके दो भेद हैं, उच्च और नीच । ऊँचे कलमें या नीचे कुलमें उत्पन्न होना इस कर्मका प्रभाव है। ज्ञातिबंधनकी परवाह नहीं करनेवाले देशोंमें भी ऊँच, नीचका व्यवहार होता है। इसका कारण यही कम है। __ अन्तराय कर्म विघ्न डालनेका कार्य करता. है । धनी और धर्मका जाननेवाला होकर भी कोई दान नहीं कर सकता, इसका कारण यह कर्म है। वैराग्यवृत्ति या त्यागवृत्तिके न होने
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