________________
जैन- दर्शन
४८१
1
नहीं लगता है । सरदीकी पीड़ाको दूर करनेके लिए जो वस्त्र पहने जाते हैं, वे ही वस्त्र गरमी के संताप में बुरे लगते हैं । बहुत देर तक बैठे रहनेवालेको चलने की इच्छा होती है, और बहुत चलनेवाला बैठ जाना चाहता है | कामभोग प्रारंभ में जितने अच्छे जान पड़ते हैं, वे अन्तमें उतने ही बुरे ज्ञात होते हैं । यह संसार की स्थिति क्या सुखमय है ? कदापि नहीं । जो सुख के साधन समझे जाते हैं, वे दुःखको कुछ देर के लिए शमन करते हैं; किन्तु नवीन सुख तो इनसे लेशमात्र भी उत्पन्न नहीं होता है । फोड़ा फूट जानेपर 'हा - य ' करके जिस सुखका अनुभव किया जाता है, वह क्या वास्तविक सुख है ? नहीं | वह क्षणमात्र के लिए वेदनाकी शान्ति है । यदि वह सुख सच्चा होता तो उसका अनुभव बेफोड़ेवाला मनुष्य भी करता ।
1
|
ऊपर विषयसेवनमें क्षणिक सुख बताया गया है, उसके लिए इतनी बात और याद रखनी चाहिए कि इस क्षणिक सुखलाभका परिणाम अत्यंत भयंकर होता है ।
जिस स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए संसारी जीव खाना, पीना, चलना, फिरना आदि कार्य करते हैं वह स्वास्थ्य कर्मोके नष्ट हो जाने से संसारी जीवोंको स्वतः मिल जाता है। इससे यह स्वीकार करना पड़ता है कि, मुक्त आत्माओंको अनन्त सुख है ।
जिसके खुजली होती है, उसीको खुजाना अच्छा लगता है दूसरेको नहीं; इसी तरह जिनके पीछे मोहकी वासनाएँ लगी रहती हैं उन्हीं को चेष्टाएँ अच्छी लगती हैं औरोंको - मुक्तात्माओं को नहीं । संसारका मोहमय-विलास प्रारंभमें, खुजली के समान आनंद देनेवाला होता है ; परन्तु अन्तमें वह दुःखों को पैदा करता है । मुक्त आत्माओंको
३१
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com