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जैन-दर्शन
सूक्ष्म होते हैं, इसलिए चर्मचक्षु इन्हें नहीं देख सकते । बादर पृथ्वीकाय, बादर जलकाय, बादर अग्निकाय, बादर वायुकाय और बादर वनस्पतिकायको चर्मचक्षु देख सकते हैं। घर्षण, छेदन आदि प्रहारविहीन मिट्टी, पत्थर आदि पृथ्वी, जिन जीवोंके शरीरोंका पिंड है, वे बादर पृथ्वीकाय कहलाते हैं । अग्नि आदिके आघातसे रहित- कूवा, बावडी आदिका जल जिन जीवोंके शरीरोंका पिंड है वे बादर जलकायके जीव हैं । इसी तरह दीपक, अग्नि, बिजली आदि जिन जीवोंके शरीरोंका पिंड है वे बादर अग्निकाय जीव हैं । जिस वायुका हम अनुभव करते हैं वह जिन जीवोंके शरीरोंका पिंड है वे बादर वायुकाय हैं । और वृक्ष, शाखा, प्रशाखा, फूल, फल, पत्र आदि बादर वनस्पतिकाय हैं। ___ उक्त सचेतन पृथ्वी, सचेतन जल आदि अचेतन भी हो सकते हैं। सचेतन पृथ्वीमें छेदन, भेदन आदि आघात लगनेसे उसके अंदरके जीव उसमेंसे च्युत हो जाते हैं और इससे वह पृथ्वी अचेतन हो जाती है । इसी तरह जलको गरम करनेसे अथवा उसमें शक्कर आदि पदार्थोंका मिश्रण होनेसे वह भी अचेतन हो जाता है। वनस्पति भी इसी प्रकारसे अचेतन हो जाया करती है। _जिनके, त्वचा और जीभ ऐसे दो इन्द्रियाँ होती हैं, वे द्वीन्द्रिय जीव कहलाते हैं । कीडे, लट, अलसिये आदि जीवोंका द्वीन्द्रिय जीवोंमे समावेश होता है । नँ, कीड़ी आदि जीव, स्पर्शन, रसना १ चादर यानी स्थूल । 'बादर' जैनशास्त्रोंका पारिभाषिक शब्द है।
२-धुरंधर वैज्ञानिक डॉ. जगदीशचंद्र महाशयने अपने विज्ञान-प्रयोगसे भी वनस्पति आदिमें जीवोंका होना सिद्ध करके बता दिया है।
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