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जैन-रत्न
चतुर्विध धर्मका क्षय होगा और साधु साध्वियोंको पोंके दिन भी या स्वनमें भी निमंत्रण नहीं मिलेगा। खोटे माप तोल चलेंगे। धर्ममें भी शठता होगी । सत्पुरुष दुःखी और दुष्ट पुरुष सुखी रहेंगे । माण, मंत्र, औषध, तंत्र, विज्ञान, धन, आयु, फल, पुष्प, रस, रूप, शरीरकी ऊँचाई और धर्म एवं दूसरे शुभ भावोंकी पाँचवें आरेमें दिन प्रति दिन हानि होगी । और उसके बाद छठे आरेमें तो और भी अधिक हानि होगी।
" इस तरह पुण्यक्षय वाले कालके फैलनेपर जिस मनुष्यकी बुद्धि धर्ममें होगी वह धन्य होगा । इस भरतक्षेत्रमें दुःखमा कालके अंतिम भागमें दुःसह नामके आचार्य, फल्गुश्री नामा साध्वी, नायल नामक श्रावक और सत्यश्री नामा श्राविका, विमलवाहन नामक राजा और सुमुख नामक मंत्री होंगे । उस समय शरीर दो हाथका, उम्र ज्यादासे ज्यादा बीस बरसकी होगी । तप उत्कृष्ट छट्टका होगा । दशवैकालिकका ज्ञान रखनेवाले चौदह पूर्वधारी समझे जायँगे । और ऐसे मुनि दुःमसह मूरि तक संघरूप तीर्थको प्रतिबोध करेंगे । इस लिए उस समय तक अगर कोई यह कहे कि धर्म नहीं है
तो वह संघ बाहिर किया जाय । ___ " दुःसहाचार्य बारह वर्षतक घरमें रहेंगे और आठ बरस तक साधुधर्म पाल अंतमें अहम तप करेंगे और मरकर सौधर्म देवलोकमें जायँगे। उस दिन सवेरे चारित्रका, मध्यान्हमें राजधर्मका और संध्याको अनिका उच्छेद होगा । इस तरह इक्कीस हजार बरस प्रमाणका दुःखमा काल पूरा होगा।
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