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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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होंगे। राजा अपने सेवकोंपर सख्ती करेंगे और सेवक लोगोंको सतायँगे, अपने संबंधियोंको लूटेंगे । इस तरह मात्स्यन्यायकी प्रवृत्ति होगी। जो अंतमें होगा वह मध्यमें आयगा
और जो मध्यमें होगा वह अंतमें जायगा । यानी जो हल्का है वह ऊँचा हो जायगा और जो ऊँचा है वह हल्का हो जायगा। इस तरह श्वेत ध्वजावाले (?) जहाजोंकी तरह सभी चलित हो जायँगे ( अपने कर्तव्यको भूल जायँगे ।) चोर चोरीसे, अधिकारी भूतकी बाधावाले मनुष्यकी तरह उदंडता एवं रिश्वतसे और राजा करके बोझेसे प्रजाको सतायँगे । लोग स्वार्थ-परायण, परोपकारसे दूर, सत्य, लज्जा या दाक्षिण्य ( मर्यादा ) हीन और अपनोंहीके वैरी होंगे । न गुरु शिष्यको शिष्यकी तरह समझेगा न शिष्य ही गुरुभक्ति करेगा । गुरु शिष्योंको उपदेशादि ( और आचरण द्वारा ) श्रुतज्ञान नहीं देंगे । क्रमशः गुरुकुलका निवास बंद होगा, धर्ममें अरुचि होगी और पृथ्वी बहुतसे प्राणियोंसे आकुल व्याकुल ह्ये जायगी। देवता प्रत्यक्ष नहीं होंगे, पिताकी पुत्र अवज्ञा करेंगे, बहुएँ सर्पिणीसी आचरण करेंगी । और सासुएँ कालरात्रिके जैसी प्रचंड होंगी । कुलीन स्त्रियाँ भी लज्जा छोड़कर भ्रूभंगीसे, हास्यसे, आलापसे अथवा दूसरी तरहके हावभावों और विलासोंसे वेश्या जैसी लगेंगी। श्रावक और श्राविकापनका हास होगा,
१-तालाब या समुद्र के अंदरकी बड़ी मछली छोटी मछलियोंको खाती हैं । मझली और छोटियोंको खाती हैं । छोटी उनसे और छोटियोंको खाती हैं। बड़ा छोटेको खाय, इसीका नाम मात्स्य न्याय है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com