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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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शहरमें रहते हैं। परंतु मुझे कर नहीं देते । इनके पास पैसे नहीं है, इस लिए मैंने इनको कहा कि, तुम अपनी भिक्षाका छठा भाग मुझे दो; मगर वह भी देनेको ये राजी नहीं हुए। इसी लिए मैंने इनको गायोंके बाड़ेमें बंद कर दिया है।" __तब शक्रेन्द्र उनको कहेगा,-" उन साधुओंके पास तुझे देनेके लिए कुछ भी नहीं है । भिक्षा वे इतनी ही लाते हैं जितनी उनको जरूरत होती है। अपनी भिक्षामेंसे वे किसीको एक दाना भी नहीं दे सकते । ऐसे साधुओंसे भिक्षांश माँगते तुम्हें लाज क्यों नहीं आती ? अगर अब भी अपना भला चाहते हो तो साधुओंको छोड़ दो वरना तुम्हारा अपकार होगा।" __" ये बातें सुनकर कल्कि नाराज होगा और अपने सुभटोंको हुक्म देगा:-" इस ब्राह्मणको गर्दनिया देकर निकाल दो।"
" इन्द्र कुपित होकर तत्काल ही कल्किको भस्म कर देगा; उसके पुत्र दत्तको जैनधर्मका उपदेश देकर राज्यगद्दीपर बिठायगा, संघको मुक्त कर नमस्कार करेगा और फिर देवलोकर्म चला जायगा । कल्कि छियासी वर्षकी आयु पूर्णकर दुरंत नरक भूमिमें जायगा। __" राजा दत्त अपने पिताको मिले हुए अधर्मके फलको याद करके और इन्द्रके दिये हुए उपदेशका खयाल करके सारी पृथ्वीको अरिहंतके चैत्योंसे विभूषित कर देंगे । पाँचवें आरेके अंत तक जैनधर्म चला करेगा।
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