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जैन-रत्न
बरसेगा । इससे गंगामें ( ? ) बाढ़ आयगी और पाटलीपुत्रको डुबा देगी । शहरमें केवल प्रातिपद नामके आचार्य, कुछ श्रावक, थोड़े शहरके लोग और कल्कि राजा किसी ऊँचे स्थानमें चढ़ जानेसे बच जायँगे । शेष सभी नगरजन मर जायँगे। __“पानीके शांत होनेपर कल्कि नंदके पाये हुए धनसे पुनः शहर बसायगा। लोग आयेंगे । शहरमें और देशमें सुख शांति होगी। एक पैसेका मटका भरके धान्य बिकेगा; तो भी खरीदार नहीं मिलेंगे। साधुसंत सुखसे विचरण करेंगे । पचास बरस तक सुकाल रहेगा। ___“जब राजा कल्किकी मौत निकट आयगी तब वह पुनः धर्मात्माओंको दुःख देने लगेगा । संघके लोगों सहित प्रतिपद आचार्यको वह गोशालामें बंद कर देगा और उनसे कहेगा-अगर तुम्हारे पास पैसा देनेको नहीं है तो जो कुछ माँगकर लाते हो उसी का छठा भाग दो । इससे कायोत्सर्ग पूर्वक संघ शक्रेन्द्रकी आराधना करेगा । शासनदेवी जाकर कल्किको कहेगी,"हे राजन् ! साधुओंने इन्द्रकी आराधनाके लिए कायोत्सर्ग किया है । इससे तेरा अहित होगा।" मगर कल्कि कुछ भी ध्यान नहीं देगा। __“संघकी तपस्यासे इन्द्रका आसन काँपेगा । वह अपने अवधिज्ञानसे संघका संकट जान कर कल्किके शहरमें आयगा और ब्राह्मणका रूप धरकर राजाके पास जाकर पूछेगा:"हे राजन! तुमने साधुओंको क्यों कैद किया है ?" ___ "तब कल्कि राजा कहेगा:-" हे वृद्ध ! ये लोग मेरे
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