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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
स्वामा-चारत
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चंपा नगरीसे विहार कर, प्रभु दशार्ण देशमें आये । वहाँकी
राजधानी दशार्ण नामकी नगरी राजा दशार्णमद्र थी । वहाँ दशार्णभद्र नामका राजा
राज्य करता था । दशार्ण नगरीके बाहर प्रभुका समवसरण हुआ । राजाको यह खबर मिली । वह अपने पूर्ण वैभवके साथ प्रभुके दर्शन करने गया और प्रभुको वंदना कर उचित स्थान पर बैठा । उसको गर्व हुआ कि, मेरे समान वैभववाला दूसरा कौन है। ___ इन्द्रको राजा दशार्णभंद्रके इस अभिमानकी खबर पड़ी। उसने राजाको, उपदेश देना स्थिर कर एक अद्भुत रथ बनाया । वह विमान जलमय था । उसके किनारोंपर कमल खिले हुए थे। हंस और सारस पक्षी मधुर बोल रहे थे। देव वृक्षों और देवलताओंसे सुंदर पुष्प उसमें गिरकर बैर रहे थे । नील कमलोंसे वह विमान इन्द्रनील मणिमयसा लगता था । मरकत मणिमय कमलिनीमें सुवर्णमय विकसित कमलोंके प्रकाशका प्रवेश होनेसे वह अधिक चमकदार मालूम हो रहा था। और जलकी चपल तरंगोंकी मालाओंसे वह ध्वजा-पताका
ओंकी शोभाको धारण कर रहा था। __ ऐसे जलकांत विमानमें बैठकर इन्द्र अपने देव-देवांगना
ओं सहित समवशरणमें आया, इन्द्रका वैभव देखकर दशार्णभद्र राजाके गर्वमें धक्का लगा। उसे खयाल आया कि, मेरा वैभव तो इस वैभवके सामने तुच्छ है । छिः मै इसीपर इतना फूल रहा हूँ। क्यों न मैं भी उस अनंत वैभवको पानेका
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